Saturday, October 2, 2010

इमोशनल अत्‍याचार

'Plz Plz zzzzzzzzzzzzzzDo it,, M Begging OK.......Plz Fwd and help little natalie.' यह ईमेल एक दिन पहले ही मेरे एक करीबी की अनुकंपा से मेरे मेल बाक्स में दाखिल हुआ था।मैंने जब मेल देखी तो आंखें आश्चर्य से चौड़ी हो गईं। यदि हिसाब-किताब की भाषा में बात की जाए तो शायद मैं पांच हजारवां व्यक्ति था जिस तक यह मेल मात्र दस दिन में पहुंची थी। एक ओर सुखद आश्चर्य हुआ कि चलो हम कितने संवेदनशील हैं जो एक बच्ची को बीमारी से निजात दिलाने के लिए इतने लोगों ने हाथ बढ़ा दिया. निश्चित तौर पर ईमेल्स का यह आंकड़ा सुकून देने वाला था।इस मेल को फारवर्ड करने में मेरा कुछ नहीं जाता है लेकिन सवाल सबसे बड़ा यही है कि जिस नताली नाम की बच्ची की बीमारी की बात की गई है यानि उसे ब्रेन कैंसर बताया गया है, उसकी फोटोग्राफ भी डाली गई है, उसके बारे में कोई नहीं जानता है कि यह नताली या उस मेल में रिक्वेस्ट करने वाली उसकी मां केरिस्टा मैरी कौन है. वह कहां की रहने वाली है और उसकी बेटी के इलाज पर कितना खर्च होने वाला है. मैसेज में लिखा है कि प्रति मेल उन्हें एओएल कंपनी पांच सेंट देगी। मेल भेजने वाले और चेन को अभियान की तरह आगे बढ़ाने वाले मित्रों का मैं अभिनंदन करता हूं. एक और मेल की बात करता हूं, यह हमें साईं बाबा की फोटो के साथ यह बताते हुए भेजा गया था कि यदि इसे हमने दस लोगों को फारवर्ड कर दिया तो अड़तालीस घंटे के अंदर हमें कोई बड़ा लाभ मिल जाएगा और यदि हमने ऐसा नहीं किया तो हम तबाह भी हो सकते हैं. मैं इस मेल पर भी देर तक रुका रहा और अंत में तय किया कि शिरड़ी के उस फकीर ने तो सिर्फ और सिर्फ लोगों की झोलियां ही भरी हैं कभी किसी का अहित नहीं किया है फिर ऐसा कैसे हो सकता है. मैंने मेल किसी को भी फारवर्ड नहीं किया. यहां भी मैं आपको बता दूं कि यह मेल भी हजारों लोगों से होते हुए हम तक पहुंचा था। कभी कैंसर पीडि़त बच्चे के नाम पर, कभी किसी बच्चे के हार्ट में सुराख होने के नाम पर तो कभी बच्चों के अनाथ होने के नाम पर हमारे पास ऐसी तमाम मेल आ चुकी हैं जो हमारी सेंस्टिविटी को कैश कराती हैं. क्योंकि दुनिया का शायद ही कोई निकष्ट और क्रूर व्यक्ति होगा जिसका कलेजा बच्चों के दुख-दर्द में न पसीजता हो साथ ही वह धर्म के खौफ से न डरता हो. फिर तो ये दोनों ही बातें क्या किसी हथियार से कम हैं. लेकिन एक बड़ा सवाल जो छूट रहा है उसका जवाब भी जरूरी है। कहीं हमारी संवेदना का एक्सप्ल्वाइटेशन तो नहीं किया जा रहा है. क्या कभी हमने जानने की कोशिश की है कि इस सबके पीछे असल खेल कहीं ईमेल हार्वेस्टिंग का तो नहीं है. हमारे एक साथी ने इसे और साफ कर दिया. उन्होंने बताया कि वह खुद भी ऐसी ही ईमेल हार्वेस्टिंग करके पैसा कमा चुके हैं. यदि उनकी बात पर भरोसा करें तो उन्होंने एक ईमेल भेजकर हजारों आईडी मात्र चंद दिन में कलेक्ट कर लीं और फिर उन्हें एक कंपनी के हाथ बेच दिया. आपके मेल पर आने वाले अनगिनत मैसेजेज का जरिया इसी तरह के तमाम मेल हैं. जिन्हें फारवर्ड करते समय आप एक बेहतरीन इंसान होते हैं, ऐसा ही खयाल ज्यादातर के मन में आता है. लेकिन एक मानवीय किस्म का सवाल भी हमारे सामने है। सूचना क्रांति के इस दौर में सबसे ज्यादा नुकसान यदि किसी का हुआ है तो वह हमारी संवेदना है। हमें सोचने ही नहीं दिया जाता है। सब कुछ यंत्रवत हमारे सामने परोसा जाता है और फिर बताया जाता है कि अब हंसना है या फिर रोना है या कुछ संजीदा टाइप का दिखना है. ऐसे दौर में यदि इस तरह के मेल या मैसेजेज हमारी संवेदना को कैश कराते रहे तो शायद जिस दिन किसी बच्चे, बूढ़े, मजलूम को सचमुच मदद की दरकार होगी तब वही मेल हमारे लिए ‘इट इज जस्ट जोकिंग’ भर बनकर रह जाएगी. इसलिए प्लीज हमारी सेंस्टिविटी का एक्सप्ल्वाइटेशन करना बंद करो.

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